मिल गए रामलाला, Nepal से Ayodhya Ram Mandir आए शालिग्राम देवशिला स्वरुप में
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समस्त विश्व के सनातनीयों की 500 वर्षों की तपस्या अब पूर्ण होने वाली है। तथा फलस्वरूप अयोध्या जी की पावन धरा पर राम जन्मभूमि में श्री राम मंदिर में पूजन हेतु अब भगवान श्री राम की प्रतिमा का भी अनावरण होने वाला है।
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Ayodhya : अयोध्या जी में बन रहे भगवान राम के मन्दिर में रामलला के बाल स्वरूप की प्रतिमा जिस पत्थर से बनाई जाएगी, वह कोई साधारण पत्थर नहीं है अपितु उसका ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है।
पिछले वीडियो में हमने आपको मंदिर में लगने वाली प्रतिमा की जानकारी दिया था कि किस प्रकार के पत्थर की खोज हो रही है। और आज हमें यह बताने में अत्यंत आनंद की अनुभूति हो रही है कि मंदिर में लगने वाली प्रतिमा के निर्माण के लिए उस पत्थर की खोज पूरी हो चुकी है। तथा यह विशेष पत्थर नेपाल की है। आपको हम इस पत्थर को चुनने की भी सम्पूर्ण जानकारी आगे देंगे तो वीडियो को अंत तक अवश्य देखें।
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भगवान रामलला की प्रतिमा (Ram Lala Pratima) के लिए भारत सरकार और राम मंदिर ट्रस्ट (Ram Mandir Trust) की ओर से प्रस्ताव को हरी झंडी मिलते ही यह तय किया गया कि रामलला की प्रतिमा ऐसे किसी पत्थर से बनाई जाए जिसका धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक महत्व हो। इसी क्रम में नेपाल सरकार (Nepal) ने कैबिनेट बैठक में पवित्र काली गण्डकी नदी (Kali Gandki River) के किनारे मिलने वाले शालीग्राम के पथर (Shaligram Stone) को अयोध्या भेजने की स्वीकृति दी।
नेपाल सरकार ने ऐसे पौराणिक महत्व के पत्थर को ढूंढने के लिये जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल सहित वॉटर कल्चर को समझने वाले विशेषाज्ञें की टीम भेजी। आपको बता दें कि जिस पत्थर को अयोध्या भेजा जा रहा है, वह साढ़े 6 करोड़ वर्ष पुराना है। जी हां सही सुना आपने साढ़े 6 करोड़ वर्ष पुराना। और उससे भी महत्वपूर्ण की इस पत्थर की आयु अभी भी एक लाख वर्ष तक रहने की बात कही गई है।
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जहां तक इस पत्थर की महत्ता की बात है, तो जान लीजिये कि यह पत्थर नेपाल की पवित्र माने जानी वाली काली गण्डकी नदी से लिया गया है। यह नदी दामोदर कुण्ड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है। इसी नदी के किनारे शालिग्राम के पत्थर पाए जाते हैं। आपको बता दें कि भगवान विष्णु के रूप में शालिग्राम के पत्थरों की ही पूजा की जाती है। इसी कारण इन पत्थरों को देवशिला भी कहा जाता है।
रामलला की प्रतिमा के लिये नेपाल के मयाग्दी जिले के बेनी में पहले शास्त्र सम्मत क्षमा पूजा की गई और फिर जियोलॉजिकल एवं आर्किलॉजिकल विशेषज्ञों की देखरेख में पत्थर की खुदाई की गई। फिर पत्थर को क्रेन की सहायता से ट्रक पर रखा गया। इनमें से एक पत्थर का वजन 27 टन और दूसरे पत्थर का वजन 14 टन बताया गया है।
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प्रतिमा की अधिक जानकारी हेतु बता दें कि राम मंदिर में लगने वाली रामलला की मूर्ति का कई चित्रकार पहले चित्र बनाएंगे, फिर चित्र को देखा जाएगा कि कौन सा चित्र हृदय को छू रहा है। उससे मूर्तिकार 9 से 12 इंच की प्रतिमा बनाएंगे, प्रतिमा में रामलला की आंख, नाक, कान, पैर की उंगली देखी जाएगी। तब राम मंदिर में लगने भगवान राम के बालरूप की प्रतिमा के बारे में निर्णय किया जाएगा और तब विशेषज्ञों की टीम रामलला की प्रतिमा बनाएगी। जिसके लिए नेपाल से लाई जा रही शालिग्राम के पूजित पत्थर को तराशा जाएगा। यह प्रतिमा 5 वर्ष के बालक के स्वरूप पर बनाई जाएगी। जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फीट होगी। राम भक्तों को अपने आराध्य के दर्शन लगभग 30 से 35 फीट की दूरी से होंगे।
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पोखरा में गण्डकी प्रदेश की सरकार की ओर से मुख्यमंत्री खगराज अधिकारी ने इन शालिग्राम पत्थर का जलाभिषेक कर उसे जनकपुरधाम के जानकी मंदिर के महन्त को विधिपूर्वक हस्तांतरित किया। पत्थर को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अब भारत लाया जा रहा है। जहां-जहां से यह शिला यात्रा गुजर रही है, उस पूरे मार्ग पर भक्तजन और श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन और पूजा की जा रही है।
बता दें कि भारत सरकार और राममंदिर ट्रस्ट की ओर से हरी झण्डी मिलते ही हिन्दू स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद नेपाल के साथ समन्वय करते हुए यह तय किया गया कि चूंकि अयोध्या का मंदिर निर्माण दो हजार वर्षों के लिए किया जा रहा है तो इसमें लगने वाली मूर्ति उससे अधिक चले उस प्रकार का पत्थर, जिसका धार्मिक, पौराणिक, आध्यात्मिक महत्व हो यह सभी बिंदुओं पर विचार कर के ही कार्य संचालित है।
वैसे नेपाल के पत्थर के प्रयोग के पीछे यह पौराणिक तथ्य है कि मिथिला में बेटियों को शादी के समय ही नहीं, अपितु शादी के पश्चात भी बेटी के घर में जब कभी कोई शुभ कार्य हो रहा हो, तो मायके से कुछ शुभ चीज़ देने की परंपरा है। चुंकि माता सीता का मायका जनकपुरधाम, नेपाल में है, और राम जन्मभूमि अयोध्या धाम में शुभ कार्य होने जा रहा है, तो इसी परंपरा के अंतर्गत प्रस्तावित राम मंदिर में जनकपुर और नेपाल का कोई अंश रहे, ऐसी कामना से यह प्रयास नेपाल प्रशासन की ओर से किए जा रहे हैं।
आपको हम यह भी बता दें कि अयोध्या में भगवान राम की प्रतिमा सज्ज करने में नौ महीने का समय लगेगा। जी हां अगले वर्ष जनवरी में मकर संक्रांति तक इन मूर्तियों के सज्ज होने की आशा है।
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अयोध्या श्री राम मंदिर निर्माण पर निर्माण समिति का आया बड़ा निर्णय
हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता सीता नेपाल के राजा जनक की बेटी थीं और उनका विवाह अयोध्या के भगवान राम से हुआ था। रामनवमी पर भगवान राम के जन्म के उत्सव के साथ, नेपाल के जनकपुर में भक्त शुक्ल पक्ष के पाँचवें दिन राम और सीता के विवाह का उत्सव मनाते हैं। यह साधारणतया नवंबर और दिसंबर के मध्य पड़ता है। जानकारों का मानना है कि इससे कालीगण्डकी क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और दोनों देशों के मध्य सांस्कृतिक संबंध और भी प्रगाढ़ होंगे।
ज्ञातव्य है कि राम मंदिर का निर्माण मार्च 2020 से चल रहा है। राम मंदिर 70 एकड़ भूमि पर बन रहा है, जिसकी लंबाई 360 फीट, चौड़ाई 235 फीट और ऊँचाई 161 फीट होगी। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अनुसार, मंदिर में पांच मंडप और बीच में एक गर्भगृह होगा। गर्भगृह भूतल पर होगा, जबकि प्रथम तल पर राम दरबार का निर्माण किया जा रहा है। 1 जनवरी 2024 को राम मंदिर का उद्घाटन कर इसे श्रद्धालुओं के लिए खोलने की तैयारी चल रही है।
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यह भी बता दें कि राम मंदिर और परिसर के निर्माण में लगभग 20 अरब रुपए खर्च होने का अनुमान है। अकेले मंदिर के निर्माण में साढ़े पाँच अरब रुपए खर्च होंगे। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सरकार से फंड नहीं मिला है। ट्रस्ट के अनुसार अब तक श्रद्धालुओं द्वारा 32 अरब रुपए से अधिक का सहयोग प्राप्त हो चुका है।
मित्रों हम आशा करते हैं कि आपको राम मंदिर में लगने वाली भगवान रामलला की प्रतिमा की जानकारी पसंद आई होगी, तो कमेंट बाॅक्स में अपने गांव अथवा जिले का नाम अवश्य लिखें एवं यदि कोई सुझाव हो वह भी बताएं।
अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें:-