माँ शारदा के भक्तों को बड़ी सौगात, 75 वर्षों बाद कश्मीर में मंदिर बनना शुरू

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कश्मीर से धारा 370 हटने का सबसे साकारात्मक प्रभाव दिखना आरंभ हो गया है। तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतवर्ष में सनातन धर्म स्थलों के निर्माण के क्रम में अब कश्मीर में भी मंदिरों का पुनर्निर्माण होना आरंभ हो गया है।

Sharda Peeth

कश्मीर से धारा 370 हटने के पश्चात कश्मीर घाटी कई परिवर्तनों का साक्षी बन रहा है। जिसके कई साकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं।

पहले हम आपको इस मंदिर के इतिहास व महत्व को बताते हैं। कश्मीरी पंडितों की आस्था का प्रतीक शारदा पीठ मंदिर (Sharda Peeth Mandir) लगभग 5000 वर्षों से अधिक प्राचीन मंदिर माना जाता है। कश्मीरी लोगों विशेषकर पंडितों समेत देशभर के हिंदुओं के मन में इस मंदिर को लेकर आज भी दर्द दिखता है। शारदा पीठ मंदिर अमरनाथ और अनंतनाग के मार्तंड सूर्य मंदिर की ही प्रकार से कश्मीर समेत पूरे भारत के लिए श्रद्धा का केंद्र है। परंतु इस मंदिर की वर्तमान स्थिति आप देख नहीं पाएंगे इतनी दयनीय है।

Save Sharda Committee

शारदा पीठ का अर्थ है माता शारदा का स्थान। शारदा देवी माता सरस्वती का ही एक नाम है। इसे कश्मीरी नाम भी बताया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार माता सती का दाहिना हाथ इस स्थान गिरा था। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, इसे देवी शक्ति के 18 महाशक्ति पीठों में से एक माना गया है। शारदा पीठ मंदिर का धार्मिक आस्था के साथ ही शैक्षणिक महत्व भी है।

भारतीय उपमहाद्वीप के प्रमुख प्राचीन विश्वविद्यालयों में एक शारदा पीठ भी था। जो कि अब वर्तमान में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास किशनगंगा (नीलम) नदी के तट पर स्थित है। श्रीनगर से लगभग 124 , मुजफ्फराबाद से लगभग 140 और कुपवाड़ा जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। शारदा देवी मंदिर में पिछले 70 सालों से विधिवत पूजा नहीं हुई है। आज भी देश भर के ब्राह्मण (पंडित) कर्मकांड के समय शारदा पीठ को नमन करते हैं।

शारदा पीठ मंदिर निर्माण के ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी देते हुए बता दें कि देवी शारदा को कश्मीरा-पुरवासनी भी कहा जाता है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार शारदा पीठ मंदिर को महाराज अशोक ने 237 ईसा पूर्व में बनवाया था। अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार शारदा पीठ का निर्माण ललितादित्य मुक्तपीड ने आरंभ कराया था।

यही नहीं ईरानी इतिहासहार अल-बरूनी ने एक तीर्थस्‍थल के रूप में शारदा पीठ के बारे में लिखा है। इस विवरण के अनुसार, आठवीं सदी तक शारदा मंदिर प्रमुख तीर्थस्‍थल बन चुका था। 11वीं शताब्‍दी में कश्‍मीरी कवि बिल्हण ने शारदा पीठ के बारे में लिखा। उन्‍होंने कश्‍मीर को शिक्षा का संरक्षक बताया और उसकी ऐसी ख्‍याति के पीछे शारदा पीठ को माना है।

Sharda Shakti Peeth

14 वीं शताब्दी तक कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण मंदिर को बहुत क्षति पहुंची। तत्पश्चात विदेशी आक्रमणों विशेषतः मुगलों और अफगानों के हमले में मंदिर का अत्यधिक क्षति हुआ। कुछ प्राचीन वृत्तांतों के अनुसार, मंदिर की ऊंचाई 142 फीट और चौड़ाई 94.6 फीट है। मंदिर की बाहरी दीवारें 6 फीट चौड़ी और 11 फीट लंबी हैं। वृत्त-खंड 8 फीट की ऊंचाई के हैं। अधिकतर ढांचा इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बेरहमी से ध्वस्त कर दिया था। इसकी कारण से शारदा पीठ में तीर्थयात्रियों की संख्‍या घट गई। कश्मीर में जब डोगरा शासन आरंभ हुआ तो शारदा पीठ के तीर्थयात्रियों की संख्या फिर बढ़ी। इस मंदिर की अंतिम बार मरम्मत 19वीं सदी के महाराजा गुलाब सिंह ने करवाया था।

एवं 1946 में कुपवाड़ा के स्‍वामी नंदलाल की अगुवाई में अंतिम बार यहां संगठित तौर पर भव्य तीर्थयात्रा का आयोजन किया गया था। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के साथ ही देश को विभाजन का गहरा घाव लगा। इसके साथ ही शारदा पीठ का भी सबकुछ बदल गया। भारत और पाकिस्‍तान में युद्ध के समयावधि में शारदा पीठ पाकिस्‍तान के कब्‍जे में रह गया। बड़ी संख्‍या में कश्‍मीरी पंडितों ने भारतीय जम्‍मू और कश्‍मीर में पलायन किया। नियंत्रण रेखा (LoC) के काफी निकट होने की कारण से यहां सरलता से तीर्थयात्रा की अनुमति नहीं मिलती। मंदिर तक जाने के लिए भारतीयों को नो-ऑब्‍जेक्‍शन सर्टिफिकेट लेना पड़ता है।

Sharda Peeth (old)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारदा पीठ शाक्त संप्रदाय को समर्पित प्रथम तीर्थ स्थल है। कश्मीर स्थित इसी मंदिर में सर्वप्रथम देवी की आराधना आरंभ हुई थी। बाद में खीर भवानी और वैष्णो देवी मंदिर की स्थापना हुई। कश्मीरी पंडितों का मानना है कि शारदा पीठ में पूजी जाने वाली मां शारदा तीन शक्तियों का संगम है। पहली शारदा (शिक्षा की देवी) दूसरी सरस्वती (ज्ञान की देवी) और वाग्देवी (वाणी की देवी)। यही नहीं विद्या की देवी सरस्वती को समर्पित शारदा पीठ में आदि शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य ने साधना कर महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की। इस पीठ को विश्व के सबसे पुराने और प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक माना जाता है।

इतिहास व महत्व की जानकारी देने के पश्चात आइए अब हम आपको शारदा मंदिर पर नवीन जानकारी देते हैं। LOC से मात्र 500 मीटर की दूरी पर जम्मू-कश्मीर के टिटवाल गांव में आजकल बहुत सारी गतिविधियां होती देखी जा सकती हैं। जम्मू कश्मीर के उत्तरी क्षेत्र में तीतवाल नियंत्रण रेखा (LoC) के पास प्राचीन माता शारदा देवी के मंदिर को बनाने का कार्य आरंभ हो गया है। सेव शारदा कमेटी (SSC) के अनुसार उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में स्थित मंदिर का निर्माण पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में शारदापीठ मंदिर की सदियों पुरानी तीर्थयात्रा को आरंभ करने के लिए किया जाएगा।

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शारदा यात्रा मंदिर समिति (SYTC) ने कश्मीर में टीटवाल क्षेत्र में एलओसी पर प्राचीन शारदा मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ किया है। समिति ने भूमि के सीमांकन के पश्चात दिसंबर 2021 में इस परियोजना की नींव रखी थी।

Bhumi Pujan

सेव शारदा कमेटी के प्रमुख रविंद्र पंडिता के अनुसार शारदा मंदिर की प्लानिंग और मॉडल को पहले ही शृंगेरी दक्षिण मठ की ओर से अनुमोदित किया जा चुका है। शारदा मंदिर में प्रयोग होने वाले ग्रेनाइट पत्थरों को कर्नाटक के बिदादी में उकेरा जा रहा है।

महत्वपूर्ण है कि इसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में शारदा पीठ की सदियों पुरानी तीर्थयात्रा को पुनर्जीवित करने के लिए बनाया जाएगा।
यह मूल रूप से शारदा मंदिर का आधार शिविर है। यात्रा यहीं से आरंभ होगी। तीर्थयात्रीयों को यहीं से पीओके ले जाया जाएगा। आधार शिविर यात्रा का पारंपरिक मार्ग होगा। जिस प्रकार से पंजाब की सीमा पर करतारपुर साहिब कॉरिडोर से दर्शन होते हैं ठीक उसी प्रकार से आगे चलकर यहां भी यात्रा होगी।

जानकारी के लिए बता दें कि 1947 में विभाजन के पश्चात, प्राचीन शारदा पीठ मंदिर और उसके परिसर तथा गुरुद्वारा भी आदिवासी हमलों में क्षतिग्रस्त हो गए थे। यहां पर क्षतिग्रस्त मंदिर और धर्मशाला तथा गुरुद्वारा के अवशेष भी मिले हैं। तब से यह भूमि वीरान पड़ी हुई है एवं स्थानीय मुसलमानों के पास थी जिसे उनसे प्राप्त कर लिया गया है।

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बीते दिसंबर 2021 के महीने में इस भूमि पर पारंपरिक पूजा की गई और इस मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए सेव शारदा समिति ने एक मंदिर निर्माण समिति का गठन किया। समिति में तीन स्थानीय मुस्लिम, एक सिख और कश्मीरी पंडित सम्मिलित हैं।

under construction temple centre

उत्तरी कश्मीर के इस टिटवाल गांव में बीते 28 मार्च को माता शारदा मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ हो गया है, एवं यहां पर मंदिर के साथ ही गुरुद्वारा और मस्जिद का निर्माण भी आरंभ हो गया है। कमिटी के अनुसार छह महीने के भीतर यह निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा।

एक अन्य जानकारी हेतु बता दें कि अयोध्‍या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए शारदा पीठ की पवित्र मिट्टी भी मंगाई गई थी।

अत्यंत संक्षेप में आपको सरलतापूर्वक समझाने के लिए यदि हम अपना दृष्टिकोण रखें तो शारदा महाशक्ति पीठ कश्मीर के शारदा घाटी में स्थित है जो कि वर्तमान के POK जिसे की पाकिस्तान ने भारत की भूमि को तथाकथित आजाद कश्मीर घोषित कर रखा है वहां से भारतीय नियंत्रण से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तथा कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में LOC से लगभग 500 मीटर की दूरी पर टीटवाल नामक स्थान पर सेव शारदा कमिटी नामक संस्था की ओर से एक पुरानी आस्था के स्थान पर ही नवीन मंदिर का निर्माण करवाया जा रहा है, जहां से भविष्य में मुख्य शारदा महाशक्ति पीठ मंदिर तक दर्शन यात्रा निकलेगी एवं LOC पार कर नीलम वैली रोड के माध्यम से लगभग 60 किलोमीटर की यात्रा तय करते हुए मुख्य मंदिर पहुंचेगी।

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यहां पर हमारा प्रश्न यह है कि टीटवाल में एक मंदिर का निर्माण तो हो रहा है परंतु क्या मुख्य मंदिर अर्थात शारदा महाशक्ति पीठ का भी कुछ हो पाएगा? क्योंकि मुख्य मंदिर की अवस्था तो किसी खंडहर से कम नहीं है। एवं वह स्थान पाकिस्तान के कब्जे में है। तथा यह भी देखना होगा कि भारत से उस स्थान पर जाने के लिए पाकिस्तान कबतक दर्शन यात्रा की अनुमति सरलता से देता है तथा कितने लोग इस यात्रा को करने में रूचि दिखाते हैं।

मित्रों यदि आपको उपरोक्त दी हुई शारदा महाशक्ति पीठ की विशेष जानकारी पसंद आई हो तो अपने गांव अथवा जिले का नाम कमेंट बाॅक्स में अवश्य लिखें।

अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें:

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