काशी का एक ऐसा मंदिर जहाँ हिन्दू कम आते हैं और मुस्लिम अधिक

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अयोध्या का राम जन्मभूमि, मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि व वाराणसी का काशी विश्वेश्वर मंदिर जैसे ही एक ऐसा मंदिर है जिसपर की मुगल आक्रांताओं की कूदृष्टि पड़ी थी एव यह मंदिर आज भी अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.

विश्व की प्राचीनतम जीवित नगर काशी का भगवान भोलेनाथ से अटूट संबंध है। काशी में शिव स्वयं वास करते हैं तथा यहाँ के कंकड़ कंकड़ में भगवान शंकर का वास माना जाता है। कहते हैं कि काशी के बिना भोलेनाथ भी अधूरे हैं यही सब महत्वपूर्ण आस्था के दिपक हैं जो काशी में सनातन धर्म ज्योत को प्रकाशमान करते हैं।

आप सभी जानते होंगे की 17वीं शताब्दी में किस प्रकार से भारतवर्ष की धरा मुगल अतिक्रमण की साक्षी रही है जिसमें कि काशी का हृदय भी छलनी हुआ था जिसकी छाप द्वादश ज्योतिर्लिंग धर्म स्थल के विध्वंस पर भी पड़ी जिसे की सभी जानते हैं तथा इससे जूड़ा विवाद तो वर्तमान समय में भी चल रहा है।

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इसी कर्म में हम आपको बता दें की केवल काशी विश्वेश्वर के मूल मंदिर को ही नहीं आॅरंगजेब ने तोड़वाया था अपितु कुछ और अति महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी इसमें सम्मिलित थे जिनमें की प्रमुख है गंगा नदी किनारे बिंदु माधव मंदिर जिसके बारे में भी कुछ लोग जानते हैं परंतु जिस मंदिर के बारे में हम आज आपको बताने जा रहे हैं अधिक संभव है कि आप नहीं जानते होंगे। इस मंदिर का नाम है कृतिवासेश्वर मंदिर।

जी हाँ यह नाम आपको संभवतः नवीन लग रहा होगा अथवा आपने कभी सुना ना हो परंतु आपको बता दें की यह अति प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिर है जिसका वर्णन काशी खंड व शिव पुराण में भी मिलता है।

यहाँ पर उपस्थित लोगों के अनुसार सुप्रसिद्ध कृत्तिवासेश्वर मंदिर अति प्राचीन है. यह स्थल वृद्धकाल के दक्षिण और कालभैरव के उत्तर कुछ पूर्व की ओर झुकते हुए गली के दहिनी ओर हंसतीर्थ अर्थात वर्तमान के हरतीरथ मुहल्ले में स्थित है। जो की अब वर्तमान में भवन सं० के. 46/38, हरतीरथ, वाराणसी के अंतर्गत आता है जिसके हम आपको निकटतम दृश्य दिखाते हैं।

आप देख सकते हैं कि इस पुराने और अत्यन्त महत्वपूर्ण मंदिर की महिमा इसी से स्पष्ट है कि कई बार मंदिर तोड़े जाने पर भी सत्रहवीं शताब्दी तक यह बना रहा। यह मंदिर भी सुन्दर वैभवशाली तथा भक्तों की आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र था। इसी कारण सन् 1659 ईसवी में औरंगजेब ने उसको तोड़कर आलमगीरी मस्जिद बनवाई।

औरंगजेब ने उस समय के जिन लोकआस्था के प्रख्यात, वैभवशाली महत्वपूर्ण और सुन्दर तीन मंदिरों को तुड़वाया उसमें से कृत्तिवासेश्वर प्रमुख है। शेष दो विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) तथा विन्दुमाधव मंदिर थे। काशी के प्रधान शिवलिंगों में कृत्तिवासेश्वर का ऊँचा स्थान है। वाराणसी के 42 प्रमुख शिवलिंगों में कृत्तिवासेश्वर प्रमुख शिवलिंग माना जाता है। फाल्गुन की शिवरात्रि के दिन इस लिंग के दर्शन, पूजन का विशेष महत्व है। इसीलिए शिवरात्रि के दिन इस शिव लिंग की पूजा के लिए समान्य दिन से अधिक भक्तों का आगमन होता है।

बता दें की मंदिर के पूर्व में संलग्न हंसतीर्थ था जो अब भी हर तीरथ पोखरे के नाम से प्रसिद्ध है। परंतु अतिक्रमण आदि से ग्रसित प्रतीत होता है। आपको हम इस क्षेत्र का दृश्य ऊपर से दिखाने का प्रयास करते हैं ता की आपको मंदिर के भौगोलिक परिदृश्य को समझने में सरलता हो। आप देख सकते हैं कि यह स्थान घनी जनसंख्या से घिरा हुआ है तथा मंदिर के सामने का हंसतीर्थ पोखरे का स्थान भी झाड़ीयों से घिरा हुआ है। तथा इसमें एक मोबाइल टाॅवर भी लगा हुआ है.

आपको हम यह भी दिखा दें की इस स्थान को किस प्रकार से अन्य धर्म के लोगों द्वारा परिवर्तित किया गया है तथा इसका प्रमाण आप यहाँ पर उपस्थित भवन संरचना के वास्तविक दृश्य को देखकर के समझ सकते हैं कि किस प्रकार से भवन के मूल आकृति को नष्ट करने का प्रयास किया गया है। तथा इसके पश्चात भी अभी भी आप देख सकते हैं कि कई भाग में सनातन केंद्रों पर मिलने वाली आकृति की अनुभूति हो रही है जैसे की कमल, अष्टदल व हाथी के प्रतीकों को हटाने व छुपाने का पूरा प्रयास किया गया है।

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पिछली सरकारों में अधर्मीयों के मनोबल में वृद्धि के कारण से इस स्थान पर हिंदू लोगों का आगमन धीरे धीरे कम होता चला गया था परंतु निकट के वर्षों में परिवर्तित परिस्थितियों के कारण से अब कुछ कुछ लोग मंदिर में दर्शन करने आते हैं परंतु समय के साथ जन चेतना व ज्ञान के अभाव के कारण से अब अधिक लोगों को तो इस महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक स्थान की जानकारी भी नहीं है।

यहाँ पर आने के लिए आपको मैदागिन से मृत्युंजय महादेव मंदिर की ओर आना होगा और यहीं पर दाहिनी ओर गली में इस ऐतिहासिक कृतिवासेश्वर महादेव मंदिर पर आया जा सकता है.

अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें:

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