योगी राज में अब मथुरा के गोवर्धन पर्वत का हो रहा है कायाकल्प

Getting your Trinity Audio player ready...

देश में हो रहे धार्मिक उत्थान के साथ अब मथुरा के गोवर्धन पर्वत का भी होगा कायाकल्प।

Govardhan Parvat

मथुरा जो स्थान भगवान कृष्ण से जुड़ा एक महत्वपूर्ण नगर होने के साथ सनातन धर्म के आधारभूमि स्वरूप जाना जाता है उस स्थान पर भी वर्तमान सरकार ने ध्यान दिया है और मथुरा के गोवर्धन में गिरिराज पर्वत को संवारने की योजना पर कार्य संचालित है।

बता दें की मथुरा के गोवर्धन में गिरिराज पर्वत की चोटी पर पानी के अभाव और जानवरों के खुरों से दम तोड़ने वाली धौ की झाड़ियां अब वृक्ष के रूप में नजर आएंगी। जिसके लिए उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने वन विभाग के साथ इन झाड़ियों को वृक्ष बनाने की योजना पर काम करना आरंभ कर दिया है।

dhau tree

इसपर अधिक जानकारी के लिए बता दें की मथुरा के गोवर्धन में गिरिराज पर्वत के ऊपरी भाग में मिट्टी का अभाव है। यहां बरसात के पानी के साथ मिट्टी बहकर नीचे क्षेत्र में आ जाती है। इसके कारण यहां पौधे बहुत कम हैं। एक बड़ा भाग ऐसा भी है, जहां केवल पत्थर ही पत्थर दिखते हैं। पत्थरों के मध्य में कुछ पौधे उगते भी हैं तो वह पानी के अभाव में दम तोड़ देते हैं। किसी प्रकार बचने पर उन्हें जानवर अपने खुरों से समाप्त कर देते हैं। जिस कारण से इसके चलते गिरिराज जी की चोटी वृक्ष विहीन हो गई है। जिसे बचाने व संवारने के लिए अब इस स्थिति को परिवर्तित करने के लिए उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद काम कर रहा है।

अधिक जानकारी के लिए बता दें की परिषद के पर्यावरण सलाहकार मुकेश शर्मा के अनुसार गिरिराज पर्वत की इस खाली पथरीले स्थान को वृक्षों से हरियालीयुक्त बनाने की योजना आरंभ की है। यहां केवल झाड़ियों के रूप में धौ का पौधा अधिक संख्या में रहता है। तथा उसे भी पेड़ ना बन के झाड़ी का रूप बनने के लिए जानवरों के खुर और पानी का अभाव देता है। 

परंतु अब धौ के पौधे को गिरिराज पर्वत के ऊपरी भाग पर झाड़ियों से वृक्ष के रूप में संरक्षित करने की योजना आरंभ की गई है। इस योजना के अंतर्गत 30 हेक्टेयर क्षेत्रफल में कार्य किया जा रहा है। जहां इन पौधों की सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता स्पिंकलर सिस्टम से की जाएगी। 

आपको हम बता दें की यह क्षेत्र खारे पानी का है तथा परियोजना के क्रियान्वयन के लिए मीठे पानी की समस्या के चलते लगभग तीन किलोमीटर की दूरी से पानी की आपूर्ति की जाएगी। पाइप लाइन के माध्यम से लगभग तीन करोड़ की लागत से पौधों के लिए सिंचाई की यह व्यवस्था की है। इससे वर्तमान में झाड़ीनुमा यह पौधा अपने मूल स्वरूप वृक्ष के रूप में खड़े हो जाएंगे।

Krishna Leela

आपको हम बता दें की गोवर्धन स्थित 21 कोसीय गिरिराज पर्वत की धार्मिक मान्यता है। इसी के कारण तीन से चार करोड़ लोग प्रतिवर्ष इसकी परिक्रमा करने के लिए आते हैं। इसकी तलहटी को पिछले कुछ वर्षों के समयावधि में हरा भरा बनाने की योजना पर कार्य किया गया है। तलहटी क्षेत्र मिट्टी से जुड़ा होने के कारण यहां पौधरोपण और उसके संरक्षण में अधिक कठिनाई नहीं आई हैं। परंतु पर्वत का ऊपरी भाग अब तक हरियाली से अछूता है। 

गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के अंतर्गत एक नगर पंचायत है। गोवर्धन व इसके आसपास के क्षेत्र को ब्रज भूमि भी कहा जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाया था।

गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। पांच हजार वर्ष पहले यह गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब संभवतः 30 मीटर का ही रह गया है। पुलस्त्य ऋषि के श्राप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। श्रीगोवर्धन पर्वत मथुरा से 22 किमी की दूरी पर स्थित है।

Also Read
संगम नगरी को बड़ी सौगात, प्रयागराज रिंग रोड ने पकड़ी रफ़्तार

अयोध्या के विकास ने पकड़ी रफ़्तार, ऐसे होगा अद्भुत कायाकल्प

जानकारी के लिए बता दें की जिस धौ के पौधों को वृक्ष क रूप दिया जाना है, यह वृक्ष मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में ही पाया जाता है तथा इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे की बाकली, बाझी, धौ, धवा,ध्वरा, तथा सबसे विशेष वियतनामी में इसे राम कहा जाता है।

Krishna Janmbhoomi Mandir

पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रीगिरिराजजी को पुलस्त्य ऋषि द्रौणाचल पर्वत से ब्रज में लाए थे। इस पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी कनिष्ठ अंगुली से उठा लिया था। कारण यह था कि मथुरा, गोकुल, वृंदावन आदि के लोगों को वह अति जलवृष्टि से बचाना चाहते थे। नगरवासियों ने इस पर्वत के नीचे इकठ्ठा होकर अपनी जान बचाई थी।

वर्तमान समय में भी सभी हिंदूजनों के लिए इस पर्वत की परिक्रमा का बहुत महत्व है। वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवमार्गी लोग तो इसकी परिक्रमा अवश्य ही करते हैं क्योंकि वल्लभ संप्रदाय में भगवान कृष्ण के उस स्वरूप की आराधना की जाती है जिसमें उन्होंने बाएं हाथ से गोवर्धन पर्वत उठा रखा है और उनका दायां हाथ कमर पर है। 

danghati-mandir

इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं। यह पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर की होती है। गोवर्धन की परिक्रमा का पौराणिक महत्व है। प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक लाखों भक्त यहां की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं। प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा पर यहां की परिक्रमा लगाने का विशेष महत्व है। श्रीगिरिराज पर्वत की तलहटी समस्त गौड़ीय सम्प्रदाय, अष्टछाप कवि एवं अनेक वैष्णव रसिक संतों की साधाना स्थली रही है। इन्हीं धार्मिक महत्ता के कारण इस ऐतिहासिक स्थान का कायाकल्प किया जा रहा है।

Also Read
वाराणसी हावड़ा बुलेट ट्रेन बिहार व झारखंड में यहाँ से हो कर के गुजरेगी!

काशी को अति शीघ्र मिलने वाली है नई पहचान

महत्वपूर्ण है कि श्री गोवर्धन पर्वत को हराभरा करने से एक नहीं अनेक लाभ होंगे जैसे की पर्वत की आयु बढ़ेगी, पशुओं को हरा चारा मिलेगा, पर्वत की सुंदरता में वृद्धि होगी, हरियाली होगी तो ऑक्सीजन बढ़ाने में सहायता भी होंगी तथा वातावरण को भी लाभ होगा। तथा सबसे महत्वपूर्ण की सनातन धर्म के ऐतिहासिक धरोहर को संजोने की दिशा में एक और योगदान होगा।

मित्रों यदि उपरोक्त श्री गोवर्धन पर्वत के कायाकल्प की जानकारी आपको पसंद आई हो तो विडियो को लाईक कर कमेंट बाॅक्स में जय श्री कृष्ण अवश्य लिखें।

अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें:

video

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *