187 वर्षों बाद बदल गया काशी विश्वनाथ मंदिर का स्वरुप
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काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के इतिहास में एक और स्वर्णिम अध्याय जुड़ गया है। 187 वर्ष के लम्बी प्रतीक्षा के पश्चात मंदिर में सोना मढ़ा गया है। तथा अब मंदिर भव्य दिव्य नव्य स्वरूप के साथ अकल्पनीय स्वर्णिम आभा भी बिखेर रहा है।
बाबा के विवाहोत्सव का पर्व महाशिवरात्रि (MahaShivratri) तो सदियों से मनाई जा रही, परंतु इस बार काशी में इसका रंग बेहद चटख हो गया है। गंगा तक विस्तारित श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का नव्य-भव्य परिसर और स्वर्णिम आभा से नहाया गर्भगृह भी कुछ अलग ही अनुभव दे रहा है। लगभग साढ़े तीन सदी के पश्चात श्रद्धालु गंगा में स्नान कर हाथ में गंगा जल लिए सीधे बाबा तक आएंगे और जलाभिषेक कर निहाल हो जाएंगे।
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बता दें की विश्वनाथ धाम के नए स्वरूप का बीते 13 दिसंबर को PM मोदी ने लोकार्पण किया था। एवं 16 फरवरी से कॉरिडोर के गंगा द्वार से प्रवेश आरंभ हो गया है तथा अब गर्भगृह की भीतरी दीवार भी सुनहरी छटा से निखर उठी है। जिसकी जानकारी हमने अपने पिछले वीडियो में दी थी। इतने सारे परिवर्तन एक साथ आज से पहले कभी देखने को नहीं मिले थे।
महाशिवरात्रि पर पहली बार बाबा के भक्त इस स्वर्णिम छटा के दर्शन करेंगे तो शाम को मड़वे (विवाह मंडप) में माता पार्वती के साथ विराजमान दूल्हा भोले शंकर की छवि देख निहाल हो जाएंगे।
श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का 50 हजार वर्गमीटर में गंगा तट तक विस्तार के पश्चात अब मुख्य मंदिर को स्वर्ण मंदिर का रूप दिया जा रहा है। इसकी भीतरी दीवारों पर नीचे से ऊपर तक स्वर्ण पत्र मढ़े जा चुके हैैं। तथा पहली बार महाशिवरात्रि पर इसे भक्तों के लिए खोला गया है।
जानकारी के लिए बता दें की मंदिर के गर्भगृह के अंदर की दीवारों पर 30 घंटे के भीतर सोने की परत लगाई गई है। बता दें कि इस काम के लिए विशेष विशेषज्ञों की पूरी टीम गुजरात से गर्भ गृह को सोने से सजाने के लिए बुलाई गई थी। सोना लगने के पश्चात गर्भगृह के अंदर की पिला प्रकाश हर किसी को सम्मोहित कर रहा है। मंदिर प्रशासन के अनुसार 37 किलो सोना लगाया जा चुका है। बचे हुए अन्य कार्यों में 23 किलो और सोना लगाया जाएगा।
मंदिर के गर्भ गृह में चल रहे स्वर्ण मंडन के कार्य के पूर्ण होने के पश्चात पहली बार पूजा करने पहुंचे प्रधानमंत्री ने इस कार्य को देखते हुए कहा कि अद्भुत और अकल्पनीय कार्य हुआ है। स्वर्ण मंडन से विश्व के नाथ का धाम एक अलग ही छवि प्रदर्शित कर रहा है।
प्रधानमंत्री शाम लगभग 6 बजे मंदिर परिसर पहुंचे विश्वनाथ द्वार से प्रवेश करने के पश्चात मंदिर परिसर के उत्तरी गेट से गर्भगृह में प्रवेश किए। मंदिर के अर्चक सत्यनारायण चौबे, नीरज पांडे और श्री देव महाराज ने बाबा का षोडशोपचार पूजन कराया। पूजन के पश्चात प्रधानमंत्री ने बाबा श्री काशी विश्वनाथ से जनकल्याण की कामना की। इसके पश्चात प्रधानमंत्री ने परिसर के भीतर चारों ओर लगे स्वर्ण के कार्य को देखा। उन्होंने कहा कि दीवारों पर उकेरी गई विभिन्न देवताओं की आकृतियां स्वर्णमंडन के पश्चात और भी स्पष्ट प्रदर्शित हो रही हैं। स्वर्ण मंडन के पश्चात गर्भ गृह की आभा कई गुना बढ़ गई है।
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जानकारी के लिए बता दें की वर्ष 1835 में पंजाब के तत्कालीन महाराजा रणजीत सिंह ने विश्वनाथ मंदिर के दो शिखरों को स्वर्णमंडित कराया था। बताया जाता है कि उस समय साढ़े 22 मन सोना लगा था। उसके पश्चात कई बार सोना लगाने व उसकी सफाई का कार्य प्रस्तावित हुआ, परंतु परिणाम तक नहीं पहुंचा। काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के साथ ही मंदिर के शेष भाग व गर्भगृह को स्वर्णजड़ित करने की कार्ययोजना तैयार होने लगी थी। इसी समयावधि में लगभग डेढ़ माह पूर्व बाबा के एक भक्त ने मंदिर के अंदर सोने लगवाने की इच्छा जतायी। मंदिर प्रशासन की अनुमति मिलने के पश्चात सोना लगाने के लिए माप और सांचा की तैयारी चल रही थी। लगभग माहभर तैयारी के पश्चात शुक्रवार को सोना लगाने का काम आरंभ हुआ।
रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब काशी विश्वनाथ में पूजा की तो पहली बार गर्भगृह स्वर्ण जड़ित होने की तस्वीरें सामने आई। बताया जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वर्ण मंडित गर्भगृह में पहली बार जलाभिषेक किया। वह स्वयं भी दीवारों और छत को देखकर चकित रह गए।
मंदिर प्रशासन की मानें गर्भगृह के अंदर सोना लगाने का काम पूरा होने के पश्चात अब चारों चौखट से चांदी हटाकर उसपर भी सोने की परत लगायी जाएगी। इसके पश्चात मंदिर के शिखर के नीचे के बचे हुए भाग में भी सोने की प्लेटें लगाई जानी है।
जानकारी के लिए बता दें की मंदिर की आंतरिक सुरक्षा CRPF के हवाले है। बाह्य सुरक्षा में यूपी पुलिस और PAC के जवान ड्यूटी पर 24 घंटे रहते हैं। इनकी ड्यूटी शिफ्ट में लगती है। जगह-जगह CCTV कैमरे भी लगे हैं। कोई भी व्यक्ति सोने की परत को नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। भक्तों को गर्भगृह में लगी स्टील की बैरिकेडिंग से बाहर निकाल दिया जाता है। अमूमन सावन और महाशिवरात्रि जैसे बड़े त्योहारों पर भक्तों के भारी संख्या के कारण उन्हें गर्भगृह में प्रवेश नहीं दिया जाता है। उस समय झांकी दर्शन और वहीं से जलाभिषेक करने की व्यवस्था की जाती है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस दक्षिण भारत के इस भक्त ने यह स्वर्ण दान किया है उसने अपनी पहचान व्यक्त नहीं की है। खबरों की मानें तो यह भक्त 1.5 महीने पहले विश्वनाथ मंदिर आया था। उसने पूरा लेखा-जोखा तैयार किया था कि मंदिर के गर्भगृह में कितना सोना लगेगा। मंदिर प्रशासन से हरी झंडी मिलने के बाद सोना लगाने का कार्य आरंभ हुआ। संयोग की बात है कि रविवार को जब बाबा के गर्भ गृह में सोना लगाने का काम पूरा हुआ तो पीएम मोदी वाराणसी में ही उपस्थित थे। पीएम मोदी ने ही बाबा के स्वर्ण धाम की विधिवत पूजा अर्चना की।
यह भी बता दें की दक्षिण भारत के एक भक्त ने पीएम मोदी के कार्यों से प्रभावित होकर काशी विश्वनाथ के लिए सोना दान किया है। इतना सोना.. जिसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। जी हाँ भक्त ने पीएम मोदी की मां हीराबेन के भार के बराबर सोना काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए दान किया है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा 1780 में कराया गया था। इसके पश्चात पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के दो शिखरों को स्वर्ण मंडित करवाया था। तात्कालिक समय में साढ़े बाइस मन सोना यहां लगवाया गया था। इसके साथ ही कई बार यहां पर सोना लगवाने को लेकर कार्य तो प्रस्तावित हुए परंतु वह धरातल पर मूर्त रूप नहीं ले पाए थे, जो वर्तमान सरकार में ही संभव हो सका।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वाराणसी से अटूट नाता है। उन्हें जब अवसर मिलता है वे वाराणसी अवश्य आते हैं। विश्व की प्राचीनतम जीवित नगरी काशी को पीएम मोदी ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट्स से चमका भी दिया है। कुछ दिन पहले ही पीएम ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया है। जिसके पश्चात मंदिर की रौनक देखते बनती है।
बता दें की इससे पहले वर्ष 2012 में भी मंदिर के गर्भगृह को स्वर्ण जड़ित करने का प्लान तैयार किया गया था। परंतु, तब IIT-BHU के सिविल इंजीनियरों ने गर्भगृह की दीवारों का परीक्षण किया था। इंजीनियरों का कहना था कि गर्भगृह के दीवारें इतना भार नहीं सहन कर सकतीं। जिसके पश्चात यह योजना आगे नहीं बढ़ सकीं थी। वहीं पिछले वर्ष 13 दिसंबर को जब कॉरिडोर का निर्माण पूरा हो गया, तब गर्भगृह की दीवारों को मजबूती मिली। इसके बाद महाशिवरात्रि से पहले पूरे गर्भगृह को स्वर्ण मंडित करने का निर्णय लिया गया।
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