बन गया अद्भुत हिन्दू मंदिर मुस्लिम देश में PM Modi द्वारा उद्घाटन
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Abu Dhabi BAPS Hindu Temple : सनातन धर्म के नवीन युग का आरंभ ही है कि जहां एक ओर अयोध्या में श्रीराम मंदिर का उद्घाटन हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर भारत के बाहर अमेरिका के पश्चात अब एक मुस्लिम देश में भी सनातन धर्म अपनी चमक पुनः प्राप्त कर रहा है।
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Abu Dhabi BAPS Hindu Temple : अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी चल रही है, देश भर से सैकड़ों लोग वहां पहुंच रहे हैं। पीएम मोदी भी उस ऐतिहासिक पल के साक्षी बनेंगे। वहीं, अयोध्या से लगभग 2800 किलो मीटर दूर एक मुस्लिम देश में भी विशाल मंदिर बन रहा है और उसका उद्घाटन भी पीएम मोदी करने वाले हैं।
संयुक्त अरब अमीरात अथवा कहूं तो UAE, नाम तो आपने सुना ही होगा। UAE की राजधानी है अबू धाबी और यहीं पर बन रहा है अबू धाबी का पहला हिंदू मंदिर तथा इस मुस्लिम देश में बन रहे हिंदू मंदिर को लेकर विश्वभर में चर्चा है। बता दे कि यूएई मुस्लिम देश है। यहां की भाषा अरबी है। यहां की जनसंख्या 2018 के लिए अनुसार 96 लाख 30 हजार है।
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बता दें कि वर्ष 2019 में अबू धाबी ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए अरबी और अंग्रेजी के पश्चात हिंदी को अपनी न्यायालयों में तीसरी आधिकारिक भाषा के रूप में सम्मिलित किया था। अमीरात में भारतीयों की संख्या 26 लाख से अधिक हो चुकी है। अर्थात यह कुल जनसंख्या का 30 प्रतिशत है। यह अमीरात का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय कहा जाता है।
UAE के संक्षिप्त जानकारी देने के पश्चात आपको हम यहाँ बन रहे हिंदू मंदिर की काल चक्र की जानकारी के लिए बता दें की वर्ष 2015 में जब पहली बार PM नरेंद्र मोदी यूएई गए थे तभी से लेकर दोनों देशों के संबंध और प्रगाढ़ हुए हैं तथा वहां एक मंदिर स्थापित करने का विषय भी उठा था और वहां के शासक ने इस पर ध्यान देने की बात कही थी।
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तथा फरवरी 2018 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुनः संयुक्त अरब अमीरात के दो दिवसीय दौरे पर गए थे। तभी पीएम मोदी ने अबू धाबी के पहले हिंदू मंदिर की आधारशिला रखी थी। अर्थात अबू धाबी के पहले हिंदू मंदिर की नींव 2018 में पड़ी थी। इसके पश्चात यूएई सरकार ने मंदिर के लिए अल वाथबा में 20,000 स्क्वॉयर मीटर भूमि उपलब्ध कराई थी। तत्पश्चात जनवरी 2019 में इस हिंदू मंदिर को 14 एकड़ अतिरिक्त भूमि आवंटित की गई। 20 अप्रैल 2019 को वह दिन आया जब, अबू धाबी में पहले पारंपरिक हिंदू मंदिर का शिलान्यास हुआ।
बता दें की बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम संस्था (बीएपीएस) स्वामीनारायण संस्था इस मंदिर का निर्माण करवा रही है। यह मंदिर पारंपरिक तौर पर अन्य अक्षरधाम मंदिर जैसा ही होगा तथा यह दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर से छोटा होगा, परंतु न्यू जर्सी के अक्षरधाम के समान होगा।
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इस मंदिर निर्माण व संरचना की विशेषताओं की जानकारी के लिए बता दें की इसके निर्माण में कई टन गुलाबी बलुआ पत्थर उत्तरी राजस्थान से अबू धाबी भेजा गया है। क्योंकि राजस्थान के इन पत्थरों में 50 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान का सामना करने की क्षमता होती है। मंदिर के निर्माण के लिए यूरोप के संगमरमर का भी उपयोग किया गया है। मंदिर की नींव स्टील या लोहे की सामग्री का उपयोग किए बिना और पारंपरिक हिंदू मंदिर वास्तुकला के माध्यम से बनाई गई है।
यह मंदिर 16.7 एकड़ में बन रहा है तथा इस मंदिर के निर्माण पर लगभग 45 करोड़ दिरहम खर्च होंगे। भारतीय रूपयों में यह मूल्य लगभग 900 करोड़ रुपए है।
बता दें की मंदिर का बाहरी भाग लगभग 12 हजार 250 टन गुलाबी बलुआ पत्थरों से तैयार हुआ है। इसमें लगभग 5,000 टन इटैलियन कैरारा मार्बल है। ये पत्थर 50 डिग्री तापमान को भी झेल सकते हैं। यह भी बता दें की इस मंदिर में भगवान कृष्ण, शिव और अयप्पा की मूर्तियां होंगी। अयप्पा को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
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यह मंदिर अल वाकबा नामक स्थान पर बन रहा है। यह आबू धाबू से लगभग 30 मिनट की दूरी पर स्थित है। मंदिर में 2000 से ज्यादा कलाकृतियां तैयार की जा रही हैं। इन्हें साकार करने के लिए 3000 से अधिक श्रमिक और शिल्पकार कार्यारत हैं।
इन पत्थरों को तराशने का कार्य विशेष सावधानी से किया जा रहा है। भारत में राजस्थान और गुजरात के स्थानीय कलाकारों ने इन्हें तैयार किया है तथा तैयार कर के भारत से भेजा गया है। निर्माण कार्य के लिए खास गुलाबी पत्थर और इटली के मैसेडोनिया का मार्बल प्रयोग में लाया गया है। मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर हिंदू महाग्रंथों की तस्वीरें और कहानियां हैं और अरब देशों की कलाकारी भी देखने को मिलेगी। संस्थान के अनुसार विश्व के अन्य भव्य मंदिरों की प्रकार से अबू धाबी का ये मंदिर भी अत्यंत भव्य और मनमोहक होगा।
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बता दें की मार्च 2021 तक यूएई में बन रहे इस पहले हिंदू मंदिर की नींव का निर्माण पूरा कर लिया गया था जो कि एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। और अब इसके उद्घाटन का समय आ गया है। जानकारी के लिए बता दें की इसकी नींव को कंकरीट से भरा गया है। इसमें लगभग 4,500 क्यूबिक मीटर से अधिक का कंक्रीट डाला है। मंदिर निर्माण में इको-फ्रेंडली तरीके पर जोर दिया गया है।
बता दें की नींव का काम पूरा होने के पश्चात नक्काशीदार पत्थर और मार्बल को ऊपर लगाकर मंदिर को आकार दिया जा रहा है। निर्माण करने वाली संस्था का दावा है कि इस मंदिर की आयु लगभग 1000 वर्ष है अर्थात एक हजार वर्ष तक मंदिर मजबूती से खड़ा रहेगा।
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भारत के हिंदू महाकाव्यों, धर्मग्रंथों और प्राचीन कथाओं के दृश्य अबू धाबी में बन रहे पहले हिंदू मंदिर के राजसी पत्थर के अग्रभाग को सुशोभित करेंगे। इस ऐतिहासिक मंदिर का काम भारतीय हिंदू समुदाय के समर्थन तथा भारत और यूएई के नेतृत्व से आगे बढ़ा है।
मंदिर उद्घाटन की महत्वपूर्ण जानकारी देने हेतु बता दें कि मंदिर का उद्घाटन एक भव्य समारोह में किया जाएगा, जो 10 फरवरी, 2025 को आरंभ होगा और 14 फरवरी को समाप्त होगा। इसे कार्यक्रम को “सद्भाव का त्योहार” नाम दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 फरवरी को अबू धाबी में हिंदू मंदिर के उद्घाटन समारोह में सम्मिलित होंगे। मंदिर का निर्माण कर रही संस्था बीपीएस के स्वामी ईश्वरचरणदास और स्वामी ब्रह्म बिहारी दास ने नरेंद्र मोदी को मंदिर उद्घाटन के लिए निमंत्रण दिया था, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है।
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यह अयोध्या के मंदिर की तरह काफी भव्य और शानदार है।यह मंदिर लगभग 55,000 वर्ग मीटर में बना है और इसे भारतीय कारीगरों ने ही तराशा है। भारत और यूएई को बीच सद्भाव के प्रतीक के तौर पर इस मंदिर का निर्माण हो रहा है। इस मंदिर में कई खास बातें हैं।
बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामिनारायण संस्था (बीएपीएस) इस मंदिर के निर्माण का कामकाज देख रही है। बीएपीएस एक ऐसी संस्था है, जिसने दुनियाभर में 1,100 से ज्यादा हिंदू मंदिरों का निर्माण किया है। दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर का निर्माण भी इसी संस्था ने किया है।
पश्चिम एशिया के इस सबसे बड़े हिन्दू मंदिर को बनाने में वैदिक वास्तुकला का प्रयोग किया गया है। मंदिर में की गई जटिल नक्काशी और मूर्तियां भारत में भी बनकर तैयार हुई हैं, जिनको विशेष व्यवस्था कर मंदिर तक पहुंचाया गया है। भारत के कई कारीगर अबू धाबी में भी मंदिर निर्माण में जुटे हैं। इस मंदिर की ऊंचाई 108 फीट है, जिसमें 40 हजार क्यूबिक मीटर संगमरमर और 180 हजार क्यूबिक मीटर बलुआ पत्थर लग रहा है।
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मंदिर के डिजाइन में सात शिखर हैं, जिनमें से प्रत्येक संयुक्त अरब अमीरात का प्रतीक होगा। इसका उद्देश्य बहुसांस्कृतिक परिदृश्य में एकता और सद्भाव को बढ़ाना है। अपने धार्मिक कार्यों से परे मंदिर परिसर में कक्षाएं, प्रदर्शनी केंद्र और बच्चों के लिए खेल के मैदान होंगे, जो एक बहुआयामी सांस्कृतिक केंद्र का निर्माण करेंगे।
सरल शब्दों में कहें तो सनातन धर्म के वर्तमान काल के स्वर्ण युग का जो क्रम नरेन्द्र मोदी जी के भारत का प्रधानमंत्री बनने के पश्चात आरंभ हुआ है वह भारतवर्ष के साथ साथ भारत की सीमा के बाहर मुस्लिम देशों तक जा पहुंचा है। और अब अरब की धरती पर सनातन धर्म का सूर्योदय हो रहा है।
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