विश्व की दूसरी सबसे ऊँची सिटींग स्टेचू ‘समानता की प्रतिमा’ का PM मोदी द्वारा लोकार्पण
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भारत नित्य नवीन कीर्तिमान बना रहा है तथा आए दिन विश्व स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाने का प्रयास भी कर रहा है। इसी क्रम में आज हम आपको विश्व के दूसरे सबसे बड़े सिटिंग स्टेच्यू की महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं जिसका लोकार्पण PM मोदी करने वाले हैं।
जैसा की हम सभी जानते हैं की जो चीज अपने आकार अथवा अपनी विशेषताओं में सबसे विशिष्ट होती है, उसकी पहचान विश्व भर में सबसे अधिक होती है। इसी उद्देश्य के साथ विश्व में दूसरी सबसे ऊँची प्रतिमा का निर्माण भारत में हो चुका है और वो भी दक्षिण भारत के हैदराबाद में। जी हाँ स्वयं को मुस्लिमों के सर्वोच्च हितैषी नेता बताने वाले वर्तमान के असदद्दीन ओवैसी के गढ़ में। हिंदूओं के एक बहुत बड़े मंदिर का निर्माण तथा सोने की प्रतिमा बन चुकी है जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 फरवरी को करने वाले हैं।
आइए आपको इस मंदिर व प्रतीमा की संपूर्ण जानकारी देते हैं। बता दें की इस परियोजना की आधारशिला वर्ष 2014 में रखी गई थी। उसी वर्ष जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने थे।
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हम आपको सबसे पहले उनकी जानकारी देते हैं जिनकी प्रतिमा बनाई गई है। वो हैं वैष्णव संत रामानुजाचार्य जिनका जन्म वर्ष 1017 में तमिलनाड़ु के ब्राह्मण परिवार में, श्रीपेरंबदूर नामक स्थान पर हुआ था। उन्होंने गुरु यमुनाचार्य से कांची में दीक्षा ली थी। श्रीरंगम के यतिराज नाम के संन्यासी से उन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। इसके पश्चात उन्होंने भारत भर में भ्रमणकर वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार प्रसार किया। इस समयावधि में उन्होंने श्रीभाष्यम् और वेदांत संग्रह जैसे ग्रंथों की रचना की। वर्ष 1137 में श्रीरंगम में रामानुजाचार्य ने 120 वर्ष की आयु में अपना देह त्याग दिया था। रामानुजाचार्य ने लाखों लोगों को सामाजिक, सांस्कृतिक, लिंग, शैक्षिक और आर्थिक भेदभाव से मुक्त किया, इस मूलभूत विश्वास के साथ कि राष्ट्रीयता, लिंग, जाति या पंथ की चिंता किए बिना हर मनुष्य समान है। उन्होंने अत्यधिक भेदभाव के शिकार लोगों सहित सभी लोगों के लिए मंदिरों के द्वार खोल दिए। वह विश्व भर के समाज सुधारकों के लिए समानता के एक कालातीत प्रतीक बने हुए हैं।
रामानुजाचार्य स्वामी ने ही सबसे पहले समानता का संदेश दिया था और इसके लिए उन्होंने पूरे देश में भ्रमण भी किया था। इसी कारण से इस प्रतिमा का नाम समानता की प्रतिमा अर्थात Statue of Equality रखा गया है।
आइए अब हम आपको इस प्रतिमा की संपूर्ण जानकारी देते हैं। बता दें की प्रतिमा कैसी बनेगी? यह तय करने के लिए सबसे पहले 14 मिट्टी की मूर्तियां बनाई गई।
यह मूर्तियां चीफ आर्किटेक्ट आनंद साईं, चीफ आर्किटेक्ट प्रसाद स्थपति ने टीम के साथ मिलकर तैयार की गईं।
इन 14 में से 4 मूर्तियां चिन्ना जीयार स्वामी और उनके सलाहकारों को पसंद आई। परंतु अलग-अलग मूर्तियों के बेस्ट पार्ट्स से नई मूर्ति बनी। ये 4 मूर्तियां वो थीं, जिनमें किसी की आंख, किसी का हाथ, किसी के पैर सुंदर थे।
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स्वामी जी ने इन 4 मूर्तियों के बेस्ट पार्ट्स से 5वीं नई मूर्ति तैयार करने का टास्क टीम को दिया।
तत्पश्चात जो नई मूर्ति बनी, उस पर दिसंबर 2014 में सबकी एक राय बनी और सबको पसंद आई।
अब इस मूर्ति को प्रतिमा में यथाउचित परिवर्तित करने टास्क था।
इसलिए बेंगलुरू में इसकी 3D स्कैनिंग की गई।
अर्थात सॉफ्टवेयर के माध्यम से मूर्ति का एक मॉडल कम्प्यूटर में सज्ज हुआ।
शास्त्रों में शरीर के जो लक्षण बताए गए हैं, उसी गणना के अनुसार सभी अंग बनने आवश्यक थे।
शास्त्रों के जानकार प्रसाद स्थपति ने अपने इनपुट्स दिए और आर्किटेक्ट के साथ स्केचिंग की।
3D स्कैनिंग के पश्चात मॉडल फाइनल हुआ।
तत्पश्चात रिसर्च आरंभ हुई कि इसे कहां बनवाया जाए।
चुकी चीन में बड़े स्टैच्यू बने हैं। इसलिए तीन मेंबर्स की एक टीम चीन गई।
वहां पर जिस कंपनी में सरदार पटेल का स्टैच्यू बन रहा था, उससे बात नहीं जम पाई ।
फिर चीन की ही एरोसन कॉर्पोरेशन के साथ प्रतिमा बनाने का एग्रीमेंट 14 अगस्त वर्ष 2015 में हुआ। तथा वर्ष 2016 से कंपनी ने स्टैच्यू बनाना आरंभ किया।
थर्मोकोल के माध्यम से विभिन्न भाग की आकृतियां बनाई गई।
हर 10-15 दिन में भारत से टीम इंस्पेक्शन के लिए चीन जाती थी।
कंधे तक तो कार्य तीव्रता से हुआ, परंतु चेहरे पर आकर रुक गया। क्यों कि चेहरे और आंखों की बनावट ही सबसे आकर्षक बनाने का टास्क था।
चीफ आर्किटेक्ट चेहरे और आंखों की तस्वीरें लेकर तीन बार चीन गए। तथा 1800 बार करेक्शन किया गया और 3 महीने का समय करुणामय चेहरा बनाने में लगा।
जानकारी के लिए बता दें की इस प्रतिमा में आंखों की चौड़ाई 6.5 फीट और ऊंचाई 3 फीट रखी गई है।
बता दें की इस स्टैच्यू के 1600 अलग-अलग पीस तैयार हुए हैं। तथा विशेषता ये है इसमें कहीं भी वेल्डिंग का छाप नहीं दिखता। जैसे-जैसे ये पीस तैयार होते जा रहे थे, वैसे-वैसे इन्हें भारत लाया जा रहा था।
तथा मुचिंतल के श्रीराम नगर में इन भागों की असेंबलिंग आरंभ हुई। एवं इस पूरे कार्य को 18 महीने में चीन की कंपनी ने पूरा किया।
जानकारी के लिए बता दें की यह प्रतिमा 650 टन की है तथा 850 टन स्टील की इनरकोर के सहारे खड़ी है। इस प्रतिमा में 82% कॉपर के अतिरिक्त जिंक, टिन, गोल्ड और सिल्वर लगा हुआ है।
संत रामानुज ने वैष्णव संप्रदाय के 108 दिव्य देशम से प्रेरणा ली थी (भगवान विष्णु के वह 108 मंदिर जहां 12 आलवार अर्थात तमिल संतों ने तीर्थ किया था)।
जानकारी के लिए बता दें की इन 108 में से 105 मंदिर भारत में हैं और एक नेपाल में। शेष दो अन्य किसी स्थान पर माने जाते हैं। हो सकता है कि वर्तमान के बांग्लादेश अथवा पाकिस्तान में हों।
ऐसे में इन्हें भी रामानुज की प्रतिमा के निकट ही बनाने का निर्णय हुआ। इन्हें ठीक उसी प्रकार से बनाया गया, जैसे कि ये मूल स्थान पर बने हुए हैं। केवल इनका स्वरूप छोटा है।
दक्षिण में स्थित पांच मंदिरों की टीम ने विजिट की। जबकि शेष 100 मंदिरों के 12 हजार फोटो एकत्र किए गए। इनका विश्लेषण करने के पश्चात मंदिरों में स्थापित की जाने वाली मूर्तियों के स्कैच तैयार किए गए।
हर एक मंदिर पर रिसर्च की और उससे जुड़ा डाटा एकत्र किया गया। एवं इन मंदिरों को कृष्णशिला से बनाया गया। इनमें वैसी ही कारीगरी हुई, जैसी मूल मंदिर में है।
बता दें की राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से पिंक स्टोन, भैंसलाना से ब्लैक मार्बल, आंध्र और तमिलनाडु से ब्लैक स्टोन भी लाए गए। यही नहीं एक विशेष प्रकार का ब्लैक मार्बल चीन से भी लाया गया। तथा नक्काशी के लिए इन स्थानों के कारीगरों को साइट पर लाया गया। जिसमें कि माउंट आबू के कारीगरों ने पत्थरों पर नक्काशी की। जयपुर के कारीगरों ने रेलिंग और दिव्य देशम पर नक्काशी की। तमिलनाडु के कारीगरों ने दिव्य देशम की मूर्तियां बनाईं। और आंध्र के कारीगरों ने भी दिव्य देशम के पत्थरों में नक्काशी की।
बता दें की वर्ष 2018 में मंदिर में लगने वाले पत्थरों की नक्काशी आरंभ हुई थी। और अब सभी 108 मंदिर बनकर तैयार हो चुके हैं। तथा सजावट आदि का कार्य संचालित है।
जानकारी के लिए बता दें की पूरा परिसर 200 एकड़ में विस्तारीत है, जबकि स्टैच्यू साइट 40 एकड़ में है।
स्टैच्यू व दिव्य देशम के अतिरिक्त यहां 42 फीट लंबा म्यूजिकल फाउंटेन भी है।
म्यूजिकल फाउंटेन भी चीन से आया है। इसके माध्यम से रामानुजाचार्य की लीलाओं को दिखाया जाएगा।
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यही नहीं एंट्रेंस में हनुमान जी और गरुड़ की 18-18 फीट ऊंची मूर्ति हैं।
तथा संत रामानुजाचार्य के बड़े स्टैच्यू के नीचे ही उनकी एक छोटी मूर्ति भी स्थापित की गई है। ऐसा माना जाता है कि वे 120 वर्ष जिए थे। इसलिए इस गर्भगृह की मूर्ति में 120 किलो सोना लगा है।
जानकारी के लिए बता दें की विशाल प्रतिमा पर किए गए सुनहरे रंग की चीनी कंपनी ने 20 वर्ष की गारंटी दी है। परंतु चिन्ना जीयार स्वामी के अनुसार, इस प्रतिमा का 2 हजार वर्षों तक भी कुछ नहीं बिगड़ेगा।
जैसा की हमने बताया की मूर्ति पंचधातु से निर्मित है। इसमें सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल और जस्ते सम्मिलित हैं।
इस पूरे परियोजना की लागत की जानकारी के लिए बता दें की पहले इस प्रोजेक्ट का खर्चा 400 करोड़ आंका गया था। परंतु बाद में यह बढ़कर 800 करोड़ पर पहुंच गया। तथा अभी तक 1400 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। यह पूरा पैसा देश-विदेश से मिले दान से आया है।
इस प्रतिमा के ऊँचाई की विस्तृत जानकारी के लिए बता दें की इस 108 फ़ीट ऊँची प्रतिमा को 54 फीट भद्रवेदी, 27 फीट पद्म पीठम पर स्थापित किया गया है जबकि प्रतिमा में लगे त्रिदण्डम की उँचाई 135 फ़ीट है। अर्थात त्रिदण्डम प्रतिमा से 27 फीट और ऊँचा है।
इस प्रकार से प्रतिमा की कुल ऊँचाई 216 फ़ीट होती है। इसके अतिरिक्त आचार्य रामानुजाचार्य की प्रतिमा में 54 कमल पंखुडियाँ, 36 हाथी, 18 शंख, 18 चक्र, और प्रतिमा तक पहुँचने के लिए 108 सीढ़ियाँ बनाई गई हैं।
अब हम आपको लोकार्पण समारोह की जानकारी देते हैं। बता दें की 1035 हवन कुंडों में लगभग डेढ़ से दो लाख किलो गाय के घी से यहाँ पर हवन किया जाएगा। यह पूजन 2 से 14 फरवरी तक यहां पर होगा। देशी घी देशभर के अलग-अलग भागों से एकत्र किया गया है।
दुनिया में जो सबसे ऊंचा, लंबा, बड़ा होता है उसकी चर्चा सर्वाधिक होती है। इसलिए संत रामानुजाचार्य की इतनी ऊंची मूर्ति बनाई गई, ताकि नई पीढ़ी उनके बारे में जाने।
बता दें की 216 फीट ऊंची मूर्ति बनाने का निर्णय वर्ष 2014 में हुआ था। प्रोजेक्ट पूरा होने में 8 वर्ष लगे। श्री रामानुजाचार्य का जन्म 1017 में हुआ था। उनकी जन्मशताब्दी के 1000 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इसलिए इस आयोजन को रामानुज सहस्राब्दी समारोहम’ नाम दिया गया है। इस समयावधि में 5 फरवरी को प्रधानमंत्री द्वारा भव्य प्रतिमा का लोकार्पण किया जाएगा तथा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 13 फरवरी को रामानुज की प्रतिमा के भीतरी कक्ष का अनावरण करेंगे।
आप यदि यहाँ पर आना चाहते हैं तो बता दें कि यह स्थान हैदराबाद से 40 किलोमीटर दूर है, तथा हैदराबाद के राजीव गांधी हवाई अड्डे से लगभग 18 किलोमीटर तथा यहाँ पहुँचने के लिए निकटम रेलवे स्टेशन है तिम्मापुर जो की लगभग 5.5 किलोमीटर दूर है।
यही भी बता दें की हैदराबाद से लगभग 40 किमी दूर मुचिंतल रोड के समीप यह स्थान है। तथा प्रतिमा बनने के पश्चात अब इस स्थान को श्रीरामनगर कहा जा रहा है।
मित्रों यदि आपको उपरोक्त Statue of Equality की विशेष जानकारी पसंद आई हो तो ॐ नमो नारायणाय नमः कमेंट बाॅक्स में अवश्य लिखें।
अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें: