काशी में घाट का कायाकल्प, अब बदलेगा सतयुग का पौराणिक घाट
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Harishchandra Ghat Redevelopment : महादेव की नगरी वाराणसी जहां लोगों के आने की कामना जीवन में शांति की खोज भी होती है और मृत्यु पश्चात मोक्ष के प्राप्ति की भी। वर्तमान समय में काशी में विकास हर ओर हुआ है और अब बारी है मोक्ष घाट के कायाकल्प की।
Harishchandra Ghat Redevelopment : मित्रों जैसा की हम सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में श्मशान घाट का बहुत महत्व होता है तथा यह स्थान आत्मा का परमात्मा के मिलन का द्वार भी माना जाता है एवं यदि बात पुराणों में वर्णित काशी के श्मशान घाट की हो तो आप समझ ही सकते उसकी महत्ता।
काशी में मुख्य रूप से दो शमशान स्थल है जिसमें से पहले है मणिकर्णिका घाट तथा दूसरा है हरिश्चंद्र घाट। जहां एक और मणिकर्णिका घाट का संबंध सीधा महादेव से है। तो वहीं दूसरी ओर हरिश्चंद्र घाट सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र से ऐतिहासिक संबंध रखता है। जिनके बारे में आपने किताबों में अथवा लोक कथाओं में अवश्य ही सुना होगा। तथा आज भी उनकी सत्यवादिता की कथा प्रचलित है।
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आधुनिक होती काशी में बहुत से विकास कार्य हुए हैं तथा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से लेकर नमो घाट व फ्लाईओवर व कई मल्टीलेवल पार्किंग भी बने हैं। परंतु मोक्ष, जिसके लिए भी लोग काशी आते हैं वह स्थान अभी भी विकास की आस संजोए हुए था। जहां पर अब विकास कार्य संचालित है।
आपको हम यहां हरिश्चंद्र घाट पर हुए ध्वस्तीकरण व वर्तमान परिस्थिति की दृश्य प्रदर्शित करते हुए बता दें कि हरिश्चंद्र घाट के विस्तारीकरण व सौंदर्यीकरण की प्रक्रिया आरंभ कर दी गई है। इस क्रम में हरिश्चंद्र घाट के आसपास अतिक्रमण के खिलाफ नगर निगम ने कार्रवाई करते हुए खाली कराया और सरकारी भूमि पर बने 13 भवनों को खाली कराकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई है जिसके पश्चात की स्थिति आपके स्क्रीन पर उपलब्ध है।
बता दें कि महाश्मशान मणिकर्णिका के साथ ही राजा हरिश्चंद्र घाट भी नए स्वरूप में दिखेगा। वर्तमान स्थितियों को देखते हुए लेआउट में साधारण परिवर्तन किया गया है। इसकी ऊंचाई भी कुछ बढ़ाई गई है। कवर्ड दाह संस्कार क्षेत्र में पांच से अधिक शव एक साथ जल सकेंगे।
अधिक जानकारी हेतु बता दें कि इसका परियोजना का नाम मोक्ष द्वार रखा गया है। दाह संस्कार क्षेत्र लगभग 6200 वर्गफीट में होगा। इसमें जलते शव दूर से नहीं दिखेंगे। इसके अतिरिक्त घाट की सीढ़ियों से लगायत जन की समस्त सुविधाओं को मानचित्र में समाहित किया गया है।
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बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका शिलान्यास बीते सात जुलाई 2023 में किया था। बहरहाल, थोड़ा विलंब से मध्धम गति से कार्य आरंभ हो गया है। अगले वर्ष तक यह घाट पुरातनता को समेटे नव्य-भव्य रूप में दिखेगा।
यह भी बता दें कि इस परियोजना पर सरकार की ओर से एक पैसा खर्च नहीं किया जाएगा। इसका निर्माण सीएसआर फंड से हो रहा है। नामी कंपनी जिंदल ग्रुप की ओर से इस पर कुल 16.86 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
अधिक जानकारी हेतु बता दें कि हरिश्चंद्र घाट का पुनर्विकास 13,250 वर्ग फीट क्षेत्र में होगा। इसमें दाह संस्कार का भी क्षेत्र होगा। सुविधाओं की बात करें तो घाट पर पंजीकरण कक्ष, सामुदायिक वेटिंग एरिया, शौचालय, रैंप आदि का निर्माण होगा। इसके अतिरिक्त स्टोर रूम, कोर्ट यार्ड, सर्विस एरिया, अपशिष्ट संग्रह व्यवस्था, सड़क आदि निर्माण भी सम्मिलित है।
जैसा कि आप देख सकते हैं कि हरिश्चंद्र घाट पर पार्किंग की सबसे बड़ी समस्या है। तथा प्राप्त जानकारी के अनुसार लेआउट में भी पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं है परंतु बताया जा रहा है कि इसके लिए भूमि की खोज हो रही है। पार्किंग की व्यवस्था हो जाएगी तो लोगों को विशेष सुविधा मिलेगी।
यही नहीं सबसे महत्वपूर्ण की हरिश्चंद्र घाट पर लाॅन भी होगा। हरियाली का भी विशेष व्यवस्था रहेगी। सूदूर से इस घाट को देखने के लिए आने वाले पर्यटकों की सुविधा का भरपूर ध्यान रखा गया है। घाट पर एक अलग से मार्ग निर्माण भी होगा ताकि घाट को निहारते हुए लोग दूसरे घाट के लिए सरलता से जा सकें।
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निर्माण कर्ता कंपनी की जानकारी देने हेतु बता दें कि इस परियोजना की कार्यदाई कंपनी BIPL है। आप को बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने वाराणसी दौरे के समयावधि में हरिश्चंद्र घाट के विस्तार एवं सुंदरीकरण की सौगात दे चुके हैं।
बता दें कि हरिश्चंद्र घाट स्थित सीएनजी शवदाह गृह तोड़ा जा चुका है। और नगर निगम 16 करोड़ 86 लाख रुपए से मोक्ष द्वार का निर्माण करा रहा है। इसके लिए सीएनजी शवदाह गृह से जल निगम पंपिंग स्टेशन परिसर तक 18 हजार 365 वर्ग फुट में मोक्ष द्वार का निर्माण होना है। इसे इको फ्रेंडली शवदाह गृह नाम दिया गया है।
यहां हो रहे विकास कार्यों के क्रम में 25 मीटर ऊंची हाईटेक चिमनी बनाई जाएगी, जिससे चिता की राख नहीं उड़ेगी। इसे बनाने में छह करोड़ रुपये खर्च होंगे। चिमनी का निर्माण वेल्लारी में हो रहा है। इसमें विशेष प्रकार के हाई स्पीड ब्लोअर लगाए जाएंगे ताकि शवदाह के दौरान निकलने वाली लपट भी आस पास न जाने पाए। केवल चिमनी पर ही छह करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह पूरी तरह से अत्याधुनिक होगा। यहां शवदाह के लिए आने वाले शवयात्रियों को पूरी सुविधाएं दी जाएंगी।
चुनार और जयपुर के पत्थरों से महाश्मशान का निर्माण कार्य पूरा कराया जाएगा। बाढ़ के समयावधि में भी शवदाह में किसी प्रकार की परेशानी न होने पाए यहां बड़ी नाव के माध्यम से बड़ी मशीनें पहुंचा दी गई हैं ताकि किसी प्रकार की कठिनाई निर्माण कार्य में न होने पाए।
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अब काशी के मणिकर्णिका घाट बदलेगा भव्य स्वरुप
वर्तमान समय में यहां काम अतिक्रमण हटाने और सीवेज, पेयजल पाइपलाइन, बिजली के केबल और अन्य सहित उपयोगिताओं को स्थानांतरित करने के पश्चात ध्वस्तीकरण आदि का संचालित है।
सबसे बड़ी बात यह है कि हाई फ्लड लेबल को ध्यान में रखकर कार्य कराया जा रहा है। जी हां, काशी में 1978 में आई अब तक की सबसे बड़ी बाढ़ को मानक मानकर काम कराया जा रहा है। 1978 में गंगा का जलस्तर 73.90 मीटर तक पहुंच गया था। इसे ही बाढ़ का उच्चतम बिंदु माना गया है। 2013 और 2016 की गंगा बाढ़ में जब जलस्तर 72 मीटर से ऊपर गया तो शवदाह गृहों पर शवदाह की क्रिया बाधित हुई थी। इसे ध्यान में रखते हुए शवदाह स्थल का कायाकल्प कराया जा रहा है। हरिश्चंद्र घाट की ऊंचाई 73.90 मीटर की जा रही है।
मित्रों यदि आपको दी हुई हरिश्चंद्र घाट रीडेवेलपमेंट प्रोजेक्ट की जानकारी पसंद आई हो तो कमेंट बाॅक्स में अपने गांव अथवा जिले का नाम लिखें। हम आगे भी ऐसी जानकारी आपतक पहुँचाते रहेंगे।
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