काशी मथुरा बाकि है? कोर्ट का ज्ञानवापी के ASI सर्वे पर फैसला
Getting your Trinity Audio player ready...
|
महादेव, श्री कृष्ण और श्री राम का सबसे महत्वपूर्ण स्थान भारत के उत्तर प्रदेश में अर्थात काशी मथुरा अयोध्या है। यूपी में CM योगी के ताजपोशी के साथ ही क्यों अब फिर से इन विवादों ने पकड़ ली तुल? क्या काशी मथुरा का समाधान भी निकट है?
आरंभ करते हैं श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से। हिंदू पक्ष के अनुसार जिस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ उस स्थान पर अनैतिक शाही ईदगाह नामक विवादित ढांचा खड़ा है जो कि मुगल आक्रमण के प्रतीक का जीवंत उदाहरण है। तथा इस विवादित ढांचे के भूमि पर स्वामित्व को लेकर न्यायालय में विवाद भी चल रहा है।
बता दें कि मथुरा में श्री कृष्ण जन्मस्थान पर भूमी को लेकर चल रहे मामले में बीते मंगलवार को जिला जज की कोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले में याचिकाकर्ता सहित दोनों पक्षकारों ने अपना पक्ष रखा। जिसके पश्चात कोर्ट ने मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख दे दी। इस मामले में 6 अप्रैल को अब न्यायालय सुनवाई करेगा।
यदि आपको यह प्रक्रिया साधारण लग रही है तो हम आपको बता दें कि यह सामान्य कत्तई नहीं है और क्यों नहीं है यह हम आपको वीडियो में आगे बताएंगे।
जानकारी के लिए बता दें कि मथुरा जिला जज राजीव भारती की अदालत में श्री कृष्ण विराजमान की याचिका पर रिवीजन के तौर पर न्यायालय ने सुनवाई की। इस समयावधि में न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख 6 अप्रैल दी गई है।
बता दें कि यह मामला जो न्यायालय में चल रहा है वो श्री कृष्ण विराजमान द्वारा लगाई गई 13.37 एकड़ भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराने को लेकर किया गया है तथा इसी दायर याचिका पर सुनवाई अब 6 अप्रैल को होगा।
यह भी बता दें कि मंगलवार को जिला जज की अदालत में श्री कृष्ण विराजमान की याचिका पर सुनवाई के समयावधि में मुस्लिम पक्ष शाही ईदगाह कमेटी की ओर से अपना उत्तर दाखिल किया गया। मुस्लिम पक्ष द्वारा श्री कृष्ण विराजमान की याचिका को गलत बताते हुए कहा कि यह नॉन मेंटेनेबल है और इनको याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। साथ ही उन्होंने पूर्व समझौते का हवाला भी दिया।
श्री कृष्ण विराजमान पक्ष द्वारा श्री कृष्ण जन्म भूमि की 13.37 एकड़ भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराने को लेकर याचिका दायर किया गया है जिसमें मथुरा की शाही ईदगाह को श्री कृष्ण जन्मभूमि का भाग बताया है। फिलहाल न्यायालय अगली सुनवाई 6 अप्रैल को करेगा।
बता दें कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन, रंजना अग्निहोत्री और उनके साथी कृष्ण भक्तों के दावे को लेकर बहस हुई। वहीं दूसरा पक्ष सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और शाही ईदगाह मस्जिद की ओर से रखा गया था।
यहां पर आप सभी को बता दें कि मथुरा में 18 महीने पश्चात जिला जज की अदालत में मंगलवार को सभी पक्षों की बहस पूरी हो गई। तथा माना जा रहा है कि 6 अप्रैल को न्यायालय निर्णय दे सकता है। इस प्रकार से 6 अप्रैल की तारीख अपने आप में महत्वपूर्ण है। और आने वाला जजमेंट क्यों इतना महत्वपूर्ण है वो अब आप काशी में हो रहे तथ्यों के आधार पर समझाते हैं।
उत्तर प्रदेश के ही वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी के विवादित ढांचे और काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) को लेकर भी विवाद है जिसे नंगी आंखों से देखकर एक बच्चा भी बता सकता है क्या सच्चाई है परन्तु कुछ लोगों ने इस मानने से इनकार करते हुए आपसी सौहार्द व भाईचारा को न मानने की सौगंध खा रखी है। इस कारण इस स्थान के भूमि की वास्तविकता को जांचने के लिए केस फाइल हुआ था। क्योंकि मुस्लिम पक्ष इसपर प्लेसेज आॅफ वरशिप एक्ट की दुहाई देता है।
बता दें कि ज्ञानवापी व काशी विश्वनाथ मंदिर के विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट 29 मार्च (मंगलवार) से प्रतिदिन सुनवाई करेगा। कोर्ट में हिंदू पक्ष की ओर से दावा किया गया है कि स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर का मंदिर सतयुग से ही वहाँ पर है। ज्ञानवापी के जिस ढाँचे को लेकर विवाद है, उसी ढाँचे में भगवान शिव विराजमान हैं। ऐसे में यहाँ के भूमि की प्रकृति पूरी तरह से धार्मिक है और इस पर प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू ही नहीं होता है।
हाईकोर्ट के जस्टिस प्रकाश पाडिया की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। जस्टिस प्रकाश पाडिया ही वाराणसी स्थित अंजुमन इंतजामिय़ा मस्जिद की याचिका और दूसरी याचिकाओं पर भी सुनवाई कर रहे हैं। हाईकोर्ट में मंदिर पक्ष से वकील विजय शंकर रस्तोगी ने बहस दाखिल की। याचिका में कहा गया है कि मंदिर का आकार चाहे जैसा भी हो, मंदिर का तहखाना और अभी भी वादी के कब्जे में है, जो कि 15वीं सदी से पहले बने मंदिर का ढाँचा है।
जानकारी के लिए बता दें कि काशी विश्वेश्वर मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर दाखिल याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में 29 मार्च मंगलवार को सुनवाई हुई. कोर्ट में मस्जिद और मंदिर दोनों पक्षों के वकीलों ने अपना पक्ष रखा. समय अभाव के चलते बहस पूरी नहीं हो सकी इसलिए कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 4 अप्रैल की तारीख नियत की है.
Also Read
PM मोदी का कमाल, दर्शन के साथ इतिहास व संस्कृति का संगम बना काशी विश्वनाथ धाम
जम्मू माता वैष्णो देवी के भक्तों की मिली बड़ी सौगात
मंदिर पक्ष की तरफ से जवाबी हलफनामे भी कोर्ट में दाखिल किए गए. याची अधिवक्ता ने प्रत्युत्तर हलफनामा दाखिल करने का कोर्ट से समय मांगा. कोर्ट ने समय देते हुए मंदिर परिसर के सर्वे कराने के वाराणसी अधीनस्थ न्यायालय के आदेश पर लगी रोक को 30 अप्रैल तक बढ़ा दी है. जस्टिस प्रकाश पाडिया ने अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी वाराणसी की तीन व यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की दो याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है.
जानकारी के लिए बता दें कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटा ज्ञानवापी श्रेत्र स्थित है। वर्ष 1991 में वाराणसी के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि मंदिर के पास स्थित ज्ञानवापी के विवादित ढांचे को अवैध तरीके से बनाया गया है। मुगल आक्रान्ता औरंगजेब ने मंदिर को तुड़वाकर उसी के ढाँचे पर मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस मुकदमें को लेकर 1997 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट से स्टे होने के पश्चात कई वर्षों तक यह वाद लंबित रहा।
इसके बाद 10 दिसंबर 2019 को विशेश्वर नाथ मंदिर की ओर से वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिविजन कोर्ट में आवेदन देकर ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील की और दावा किया की इसके नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरातात्विक अवशेष हैं। भूतल में एक तहखाना है। जिसमें 100 फुट गहरा शिवलिंग है। मंदिर का निर्माण सतयुग में राजा हरिश्चंद्र ओर हजारों वर्ष पूर्व राजा विक्रमादित्य ने करवाया था, तथा वर्तमान के काशी विश्वनाथ मंदिर का 1780 में अहिल्यावाई होलकर ने जीर्णोद्धार कराया था।
Also Read
अयोध्या राम मंदिर पर यूपी सरकार हुई Active, भक्तों को मिली दोहरी खुशी
काशी विश्वेश्वर व ज्ञानवापी के इतिहास का सम्पूर्ण काला सच
इसमें हम आपको सबसे महत्वपूर्ण बात बता दें कि पिछले वर्ष वाराणसी की लोअर कोर्ट ने इस मामले की वास्तविकता का पता लगाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को सर्वे करने का आदेश दिया था, परंतु तत्पश्चात सुन्नी वक्फ बोर्ड और मस्जिद इंतजामिया कमेटी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी जिसपर सितंबर 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। और अब यह रोक 30 अप्रैल तक बढ़ चुकी है।
जैसी कि संभावना थी कि चुनाव पश्चात इन मामलों में पुनः जान आएगी तो ठिक वैसा ही हुआ। और यूपी में CM योगी के जीत के पश्चात इन दोनों विवाद पर चल रहे केस में अब शीघ्र ही निर्णय आने की संभावना है। एवं हाईकोर्ट का इस विवाद प्रतिदिन सुनवाई करने का निर्णय इस मामले के समाधान शीघ्र होने के प्रबल संकेत है। तो क्या अब यह काशी मथुरा बाकी है का नारा हुआ पुराना? इसपर आपके क्या विचार हैं वह हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर अवश्य बताएं।
अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें