अब मथुरा के गोवर्धन पर्वत को हरित स्वरूप देने की बनी योजना

मथुरा के गोवर्धन में गिरिराज पर्वत की चोटी पर पानी के अभाव और जानवरों के खुरों से दम तोड़ने वाली धौ की झाड़ियां अब वृक्ष के रूप में नजर आएंगी। उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने वन विभाग के साथ इन झाड़ियों को वृक्ष बनाने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। इसमें सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर सिस्टम का भी सहारा लिया जा रहा है।

गिरिराज पर्वत के ऊपरी हिस्से में मिट्टी का अभाव है। यहां बरसात के पानी के साथ मिट्टी बहकर नीचे क्षेत्र में आ जाती है। इसके कारण यहां पौधे बहुत कम हैं। एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है, जहां सिर्फ पत्थर ही नजर आते हैं। पत्थरों के बीच में कुछ पौधे उगते भी हैं तो वह पानी के अभाव में दम तोड़ देते हैं। किसी तरह बचने पर उन्हें जानवर अपने खुरों से खत्म कर देते हैं। इसके चलते गिरिराज जी की चोटी वृक्ष विहीन है। अब इस स्थिति को बदलने के लिए उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद काम कर रहा है।

गोवर्धन स्थित दानघाटी मंदिर

परिषद के पर्यावरण सलाहकार मुकेश शर्मा ने बताया कि गिरिराज पर्वत की इस खाली पथरीले स्थान को वृक्षों से हरियालीयुक्त बनाने की योजना शुरू की है। उनका कहना है कि यहां सिर्फ झाड़ियों के रूप में धौ का पौधा बहुतायत में रहता है। उसे झाड़ी का रूप जानवरों के खुर और पानी का अभाव देता है।

गोवर्धन पर्वत

अब धौ के पौधे को गिरिराज पर्वत के ऊपरी हिस्से पर झाड़ियों के रूप से वृक्ष के रूप में संरक्षित करने की योजना शुरू की है। इसके लिए 30 हेक्टेयर क्षेत्रफल में काम किया जा रहा है। जहां इन पौधों की सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता स्पिंकलर सिस्टम से की जाएगी।

गोवर्धन पर्वत

इस क्षेत्र में खारे पानी की समस्या के चलते करीब तीन किलोमीटर की दूरी से पानी की आपूर्ति की जाएगी। पाइप लाइन के माध्यम से करीब तीन करोड़ की लागत से पौधों के लिए सिंचाई की यह व्यवस्था की है। इससे यह वर्तमान में झाड़ीनुमा यह पौधा अपने मूल स्वरूप वृक्ष के रूप में खड़े हो जाएंगे।

गोवर्धन स्थित दानघाटी मंदिर

गिरिराजजी का है धार्मिक महत्व 
गोवर्धन स्थित 21 कोसीय गिरिराज पर्वत की धार्मिक मान्यता है। इसी के कारण तीन से चार करोड़ लोग प्रतिवर्ष इसकी परिक्रमा के लिए आते हैं। इसकी तलहटी को पिछले कुछ वर्षों के दौरान हरा भरा बनाने की योजना पर काम किया गया है। तलहटी क्षेत्र मिट्टी से जुड़ा होने के कारण यहां पौधरोपण और उसके संरक्षण में ज्यादा दिक्कतें नहीं आई हैं। लेकिन पर्वत का ऊपरी हिस्सा अब तक हरियाली से अछूता है।

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