700 वर्षों बाद लिखा गया कश्मीर में एक नया इतिहास
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कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने का एक के बाद एक साकारात्मक प्रभाव दिख रहा है। तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतवर्ष में सनातन धर्म स्थलों के निर्माण के क्रम में अब कश्मीर में भी मंदिरों का पुनर्निर्माण हो रहा है। (Martand Sun Temple Kashmir)
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के पश्चात कश्मीर घाटी कई परिवर्तनों का साक्षी बन रहा है। जिसके कई साकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहे हैं।
पहले हम आपको इस विशेष मंदिर के इतिहास व महत्व की महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं। कश्मीर (Kashmir) में एक बहुत ही पराक्रमी राजा हुआ करते थे जिनका नाम था ललितादित्य मुक्तापीड। मार्तण्ड सूर्य मंदिर (Martand Sun Temple) का निर्माण उन्होंने ही करवाया था। इस मंदिर पर गांधार और गुप्ता शैली का प्रभाव है। महाराज ललितादित्य मुक्तापीड का सन् 761 में निधन हो गया था। मार्तण्ड सूर्य मंदिर की भव्यता की तुलना विजयनगर सम्राज्य की राजधानी हम्पी से होती रही है। अफ़सोस ये कि इस्लामी आक्रांताओं की बर्बरता के कारण हम्पी के भी अब केवल अवशेष ही बचे हैं। वो नगर, जिसकी तुलना तब के रोम से होती थी।
उस समय भारत, ईरान और मध्य एशिया के कई क्षेत्रों में करकोटा वंश के ललितादित्य मुक्तापीड का शासन फैला हुआ था। भले ही इस मंदिर का भव्य निर्माण उन्होंने कराया हो, इससे जुड़ी कथा महाभारत में पांडवों तक जाती है। मार्तण्ड सूर्य मंदिर के आसपास कुल 84 अन्य छोटे-छोटे मंदिर हुआ करते थे, जिनके आज केवल अवशेष ही बचे हैं। ओडिशा के कोणार्क और गुजरात के मोढेरा की ही प्रकार से मार्तण्ड सूर्य मंदिर का स्थान भी देश में उच्चतम था।
इस मंदिर की संरचना 8वीं शताब्दी की बताई जाती है, परंतु दावा किया जाता है कि यह मंदिर इसके भी कई सौ वर्षों पूर्व से ही था।लगभग ४९०-५५५ ई तक। इस मंदिर की महत्ता मराठी साहित्य ‘मार्तंड महात्मय’ में भी मिलती है। मंदिर की दीवार की नक्काशी पर कई देवताओं जैसे विष्णु और नदी देवी जैसे कि गंगा और यमुना, सूर्य देव आदि को दर्शाया गया है।
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जानकारी हेतु बता दें कि कार्कोट राजवंश के पश्चात उत्पल राजवंश के काल में भी मार्तंड मंदिर का वैभव सुरक्षित रहा था। हालांकि 14वीं शताब्दी आते-आते मुस्लिम प्रचारकों पर विश्वास करने के कारण से हिंदू राजाओं का पतन आरंभ हो गया। 14वीं सदी की आरंभ में कश्मीर के शासक राजा सहदेव थे। उसी समयावधि में मार्तंड मंदिर पर कई बार हमला किया और 15वीं सदी में इस मंदिर को तोड़कर इसमें आग लगा दी गई।
कहा जाता है कि 8वीं शताब्दी के इस मंदिर को सिकंदर शाह मिरी के शासन के समयावधि में 1389 और 1413 के बीच इस्लामी आक्रांताओं ने इसे जड़ से मिटाने की ठान ली और इसे अवशेषों में बदल दिया। एक पूरी की पूरी फ़ौज को इस मंदिर को तोड़ने में पूरे एक वर्ष लग गए, जिससे इसकी मजबूती का अनुमान लगाया जा सकता है।
स्थान विशेष की जानकारी हेतु बता दें कि अनंतनाग नगर से पूर्व दिशा में इसकी दूरी 3 किलोमीटर है और ये जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये एक किस्म के पठार पर स्थित है। उस समय इसकी कलाकृतियाँ देख कर लोग अचंभे से भर जाते थे। सिकंदर शाह मीरी ने उनमें से कई मंदिरों को ध्वस्त कर के उन्हीं ईंट-पत्थरों का प्रयोग कर मस्जिदें बनवाई। उसने इसकी जड़ों को खोदना शुरू किया और उनमें से पत्थर निकाल कर लकड़ियाँ भर देता था। इसके बाद उन लकड़ियों में वो आग लगवा देता था। इस तरह उसने मार्तंड सूर्य मंदिर को ध्वस्त कर डाला।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में एएसआई द्वारा संरक्षित मार्तंड सूर्य मंदिर में बीते शुक्रवार प्रातः 100 से अधिक तीर्थयात्रियों ने कुछ घंटों तक पूजा-अर्चना की। इस कार्यक्रम के माध्यम से सूर्य मंदिर में पहली बार शंकराचार्य जयंती मनाई गई है। जिला प्रशासन द्वारा प्रदान किए गए सुरक्षा कर्मियों की उपस्थिति में तीर्थयात्री हिंदू धर्मग्रंथों का पाठ करते हुए प्राचीन मंदिर के खंडहरों के मध्य एक पत्थर के मंच पर बैठ गए।
दल के हाथ में भगवा झंडा था, जिस पर ओम लिखा हुआ था, साथ ही तिरंगा भी है। श्रद्धालुओं ने ‘हर हर महादेव’ का नारा लगाते हुए शंख बजाये। वहीं सशस्त्र सुरक्षाकर्मी उनके साथ चल रहे थे, और तीर्थयात्रियों के चारों ओर खड़े देखे जा सकते थे क्योंकि कुछ एक पत्थर के मंच पर बैठे थे और हनुमान चालीसा और गीता के छंदों का पाठ कर रहे थे, जबकि अन्य लोग जमीन पर बैठकर पूजा-अर्चना देख रहे थे।
100 से अधिक लोगों ने इस मंदिर में हनुमान चालीसा (Hanuman chalisa) का पाठ किया। श्रद्धालुओं ने हर हर महादेव का नारा लगाया, शंख भी बजाये। कुछ दिनों पहले ही सूर्य मंदिर मार्तंड अनंतनाग में पहली बार शंकराचार्य जयंती मनाई गई थी। जहां तमाम ज्योतिषाचार्यों ने पूरे विधि और विधान के साथ पूजा अर्चना की।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि जम्मू-कश्मीर के मार्तंड सूर्य मंदिर को लगभग 700 वर्ष पहले तोड़ा गया था इस प्रकार से यहां पर वर्तमान में 700 वर्षों पश्चात किसी प्रकार की पूजा हुई है।
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जैसा कि हम सभी जानते हैं कि फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने घाटी के कई ऐसे अनजाने तथ्यों से परिचित कराया है जिससे फाइलों की गर्त में दबे कई सच सामने आ गए।
महत्वपूर्ण है कि आज आदि गुरु शंकराचार्य की आशीर्वाद से सैकड़ों वर्ष पुराने मंदिर मार्तंड मंदिर में भी सनातनी पूजा अर्चना हो रही हैं। तथा कश्मीर के एलजी मनोज सिन्हा जी व पीएम नरेंद्र मोदी जी का यह प्रभाव है कि कुछ भी संभव हो सका है।
आपको हमनें अपनी पहले बताया था कि शारदापीठ देवी सरस्वती का प्राचीन मन्दिर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर अर्थात PoK में शारदा के निकट किशनगंगा नदी (नीलम नदी) के किनारे स्थित है। इसके भग्नावशेष भारत-पाक नियन्त्रण-रेखा के निकट स्थित है। कश्मीरी पंडितों की एक संस्था ने मांग की है कि करतारपुर गुरुद्वारा तक जाने के लिए विशेष गलियारे की प्रकार से ही शारदा मंदिर कश्मीरी पंडितों और देश के अन्य हिंदुओं की यात्रा के लिए खोला जाना चाहिए। तथा शारदा यात्रा कमिटी की ओर से LOC के निकट ही एक शारदा मंदिर का निर्माण भी किया जा रहा है।
मित्रों यदि उपरोक्त दी हुई कश्मीर के मार्तंड सूर्य मंदिर की जानकारी आपको पसंद आई हो तो कमेंट बाॅक्स में ईष्ट देव का नाम अवश्य लिखें।
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